AKULAHTE...MERE MAN KI
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कोई भी नहीं बदलता
चीजे भी नहीं बदलती
बदलती है तो फिजां
मौसम ,हवा, चेहरे
और सुख के मायने
अपने हिस्से की धुप झेलो
अपने हिस्से की हवा भी लेलो
अपनी जिंदगी जी लो
परोस में पीपल का पेर
नयी कोपलें, नए पंछी
मधुमखी का छत्ता
मैना, बुलबुल, गोरैया बसेरा सबका
अपने हिस्से की जमीं तलाशते लोग
बसेरा बसाने के जोदोजहद में
जैसी कीमत वैसा बसेरा
अपने हिस्से का सुख सवारते लोग
जिंदगी जीते लोग
जनम मरण का सिलसिला चलता रहता
कुछ भी तो नहीं बदलता
कुछ भी नहीं
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