AKULAHTE...MERE MAN KI
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कुछ इस तरह जिंदगी गुजरी
मकसद कहीं गुम सा गया
चली थी जिन सपनों को जीने
वो सपने कहीं खो गए
जिंदगी को मुट्ठी में यूँ बांध लुंगी
मंजिले मकसूद तो यूँ ही पालूंगी
जोश था, जुनून था
वक्त की रेत में
पता नहीं कहाँ ढक गए
अब तो दिन और रात की
बंधी हुयी सीमाएं है
समय की चक्की में हम भी अब पीस रहे
सीमाएं तोड़ डालने की जो जज्बे थे
वक्त की मिटटी में कहीं दब गए
उठ ख्ररे होने की
कोशिश फिर से अब तो करनी है
जब तक साँस है तो आस है
सपनो को ढूंड लाने का
अब तो फिर प्रयास है
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