AKULAHTE...MERE MAN KI
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प्रारब्ध बदल देंगे
अपनी हिम्मत से
एक दिन
इतिहास गवाह है
ऐ मन…
मत घबरा
इन झंझावातो से
सूरज को तो
आना है प्रतिदिन
घनघोर अँधेरा तो
मेहमान है
कुछ पल का
इस पल में
जो हार गया
वो इन्सान भी क्या
है इन्सान
जो भागीरथ की भांति
तप कर न सके
और जिद कर के
गंगा को धरती पे
ला न सके
जो बन पाणिनि
ज्ञान की वर्षा से
जीवन मधुर
बना न सके
है अंत सभी का
एक दिन
तो फिर घबराना
है कैसा
तू जोर लगा
ऐ मन
फिर देख कैसे
बहती धारा का रुख
तू मोड़ न सके
पर्वत भी हिल जाता है
जब इन्सान ठन जाता है
है मंजिल
जीतनी दूर सही
तू चलता रह
ऐ मेरे मन…
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