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आदरणीय गुणीजनों के अनुरोध पर मैं ‘हाइकु‘ पे थोडा सा प्रकाश डाल रही हूँ / आशा है आप सबको क्षणिकाएं और ‘हाइकु‘ में शिल्पगत अंतर समझाने में मैं सफल रहूंगी /
‘हाइकु‘ जापानी साहित्य की प्रमुख विधा है। हिंदी साहित्य की अनेकानेक विधाओं में ‘हाइकु’ नव्यतम विधा है।
हाइकु को काव्य-विधा के रूप में प्रतिष्ठा प्रदान की मात्सुओ बाशो (१६४४-१६९४) ने। बाशो के हाथों सँवरकर हाइकु १७वीं शताब्दी में जीवन के दर्शन से अनुप्राणित होकर जापानी कविता की युग-धारा के रूप में प्रस्फुटित हुआ। आज हाइकु जापानी साहित्य की सीमाओं को लाँघकर विश्व-साहित्य की निधि बन चुका है।
हाइकु कविता को भारत में लाने का श्रेय कविवर रवींद्र नाथ ठाकुर को जाता है।हाइकु कविता आज विश्व की अनेक भाषाओं में लिखी जा रही/हाइकु सत्रह (१७) अक्षर में लिखी जानेवाली सबसे छोटी कविता है। इसमें तीन पंक्तियाँ रहती हैं। प्रथम पंक्ति में ५ अक्षर, दूसरी में ७ और तीसरी में ५ अक्षर रहते हैं। संयुक्त अक्षर को एक अक्षर गिना जाताहै, जैसे ‘सुगन्ध‘ में तीन अक्षर हैं – सु-१, ग-१, न्ध-१) तीनों वाक्य अलग-अलग होनेचाहिए। अर्थात एक ही वाक्य को ५,७,५ के क्रम में तोड़कर नहीं लिखना है। बल्कि तीन पूर्ण पंक्तियाँ हों।
हाइकु कविता में ५-७-५ का अनुशासन तो रखना ही है, क्योंकियह नियम शिथिल कर देने से छंद की दृष्टि से अराजकता की स्थिति आ जाएगी।हाइकु में एक भी शब्द व्यर्थ नहीं होना चाहिए। हाइकु का प्रत्येक शब्द अपने क्रम में विशिष्ट अर्थ का द्योतक होकर एक समन्वित प्रभाव की सृष्टि में समर्थ होता है।
यदि ५-७-५ में नहीं लिख सकते तो फिर मुक्त छंद में अपनी बात कहिए, क्षणिका के रूप में कहिए उसे ‘हाइकु’ ही क्यों कहना चाहते हैं? अर्थात हिंदी हाइकु में ५-७-५ वर्ण का पालन होता रहना चाहिए यही हाइकु के हित में हैं।
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१. बौराया आम
चहका उपवन
आया बसंत
२. गरजे घन
नाच उठा किसान
बुझेगी प्यास
३.दहेज़ भारी
कुरीतियों की मारी
वधु बेचारी
४.अंकुर बनी
अभी नहीं खिली थी
भ्रूण ही तो थी
५.शोर है कैसा
कुर्सी पे तो है बैठा
अपना नेता
६ धर्म की आड़
बाबाओ का व्योपार
दुखी संसार
७. ठाट बाट में
कानून की आड़ में
कैदी दामाद
टूटे सपने
डिग्रियां बनी भार
९.व्याकुल मन
लगे जैसे है स्वर्ग
मैया की गोद
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