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माँ के नाम से से ही मैं निशब्द हो जाती हूँ .. माँ के लिए क्या लिखू???? .. लिख के भी सब लिख पाऊँगी क्या ? ??? .. जो एहसास है .. ज़ज्बात है … उनके लिए शब्द कभी पुरे पड़ जायेंगे क्या ????…… क्या मैं उन लम्हों को शब्दों में व्यक्त कर पाऊँगी जो जिया है माँ मैंने तुम्हारे पास.. तुम्हारे साथ .. क्या ऋण मुक्त हो जाउंगी .. जो तुमने किया है …. पहला दिन और पहली रात से लेकर आज तक तुमने कितने रातें उनीदी काटी होगी मेरी सुख चैन की नीदों के लिए…. उस त्याग का हिसाब ठीक ठाक मैं लगा पाऊँगी क्या ??? . जो तुमने असंख्य बार किया है मेरे अस्तित्व को बनाने के लिए …. . मन भारी होने लगा माँ .. तुम्हारी याद आने लगी … अकेलापन तारी होने लगा …. तुम्हारी आगोस में आना चाहती हूँ फिर से .. तुम्हारे पास आना चाहती हूँ माँ … हर विषय पे न्याय किया जा सकता है माँ .. पर तुम पे लिख के कभी क्या लिख पाउंगी ………. बस एक कोशिश है….. माँ तुम्हारे लिए………
माँ … माँ ..माँ ..
हाँ पहला शब्द यही तो सीखा
दुनिया में आकर
तुम्ही तो हो वो
जो याद आती हो
हर हार पर
हर जीत पर
तुमने ही तो सिखाया मुझे
हार कर भी हँसना
गिर कर भी संभलना
हर बार मुझे चेताया
मत भूलो क्यूँ आई हो
इस धरा पर
मत गवाओ वक्त यूँ बकवाद पर
मानवता है सर्वोपरि धर्म
उसके लिए कुछ कर जाओ
जीवन में परोपकार का वृक्ष तुम लगाओ
हर बार याद दिलाया की
जीवन का मतलब है चलना
हर बार मुझे बताया
कर्म करना मत छोड़ो
सूरज से उगना सीखो
और चंदा से शीतल करना
चिड़ियों से उड़ना सीखो
और चहकना
कितनी यादें है
कितनी ही बातें है
बरसों बीत जायेंगे युहीं
गर करू तेरी जो यादें है
कभी नहीं चाहा तुमने
कुछ भी तो नहीं बस
कहती हो हरदम
जब देखती हो मझे
कभी कमजोर औ निर्बल
देखना चाहती हो मुझमे
एक साहसी इन्सान
जो जरुरत पर आये
दुसरो के काम
मेरी हर जिद को तुमने है माना माँ
मेरे हर सपने को पूरा करने को ठाना
है माँ
हर बार लड़ी हो सबसे तुम
मेरी हर इच्छा को पूरा करने को
हर बार कमर कसी हो तुम
फिर भी माँ
कई बार मैं चिल्लाई हूँ
कई बार झल्लाई हूँ
कई बार कहा तुमसे है
छोड़ दो मुझको मेरे हाल पे
पर हर बार तुम मेरे साथ थी
सिर्फ तेरा ही आँचल था माँ
जब कभी छली गयी हूँ
तुम्हारे गोद का आसरा था माँ
जब कभी फिसली हूँ
तुमने ही तो संभाला है माँ
माँ तुम ही तो मुझे
हमेशा होने का एह्साह कराती हो
माँ एक तुम्ही तो हो
जो हमेशा मेरे साथ हो
जब भी मेरी संवेदनाएं
मरुभूमि में तब्दील होने को तत्पर होती है
तुम मुझे मनुष्यता का एहसास करती हो
तुम्ही हो जो झट से
पढ़ जाती हो मेरे मनोभाव को
मेरे अंदर चल रहे हर एहसास को
दूर हूँ अभी मीलों तुमसे
तब भी तुम सब जान जाती हो
मैं जब भी तुम्हे याद करती हूँ
खुश हूँ या उदास हूँ
स्वस्थ हूँ या बीमार हूँ
सह लेती हो मेरे बरसाए हर अंगार को
झेल लेती हो मेरी हर बकवास को
तुम्ही तो मेरी पक्की सहेली हो और
तुम्ही तो मेरा पहला प्यार हो
तुम्ही तो हो जो सिर्फ मेरी हो
तुम्ही तो हो जो
मेरी सांसो में है
मेरी नीदों में , मेरी खाबो में है
माँ मेरे जीवन के हर लम्हों में
तेरा ही तो साथ है
मेरे जीवन की तुम शीतल बयार हो माँ
तुम्ही तो मेरी दुर्गा हो , लक्ष्मी हो
तुम्ही मेरी गौरा औ पार्वती हो
तुम्ही सीता हो , तुम्ही अहिल्या
तुम्हारा गोद ही मेरा स्वर्ग है माँ
तुम्हारा स्नेह ही तो मेरा संजीवनी है
माँ तुम हो तभी मैं हूँ ……………….
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