- 25 Posts
- 686 Comments
किसान भाईयों के लिए जो निरंतर आत्महत्याओं के लियें विवश हो रहे हैं …
.मैं किसान हूँ
मैं बोता हूँ
गन्ने , चावल , आलू
सब्जियां और ना जाने
कितनी फसलें
खोदता हूँ मिटटी
प्यार से रोपता हूँ
देता हूँ स्नेह
इंच दर इंच बढ़ना
रोज ताकता हूँ
और नाच उठता हूँ
बढ़ता देख
गाता हूँ ख़ुशी के गीत
रात भर जगता हूँ
करता हूँ पहरेदारी
कोई देना उसे तकलीफ
उखाड़ ना दें कोई उसे
जड़ो से
पर मिलता हैं उसके बदले
मुठी भर रूपये
गरीबी , जहालत
लेनदारो का कर्ज
पत्नी की आँखों में दर्द
बच्चो का भूखे बिलबिलाना
बैलो का चारे बिना
तड़प तड़प के मर जाना
क्योंकि बोरी भर फसलें मेरी
बिक जाती हैं मिटटी के मोल
ठगा सा मैं खड़ा
देखता हूँ आकाश को
जेठ की धुप
क्या जलाएगी
अब तो तिल तिल मर रहा हूँ
गले में कसी
कर्ज की हुक से ….
.
ये परजीवी ( खुदगर्ज समाज को परजीवी संबोधित किया है )
ये जिन्दा रहें
फले फूलें
हँसे मुस्कुराएँ
नाचे गायें
इसके लिए
उन्हें देता हूँ
भूखे रह कर भी
अमृत रूपी अन्न
नाना प्रकार के सुस्वाद का
करता हूँ इंतजाम
ये सुंदर लगे
सजे सवरें
घर को भी
सुसज्जित करें
इसलिए नंगा रह कर भी
उपजाता हूँ कपास
आंधी -पानी हो
या कड़ी धूप
अथक डटा रहता हूँ
ताकि ये
निरंतर बढते रहें
सुखी रहें
पर इनकी भूख
सुरसा की तरह बढती ही जाती है
और एक दिन
मैं भी हो जाता हूँ
इनका ग्रास ….
Read Comments