Menu
blogid : 8762 postid : 249

नियति तू कब तक खेल रचाएगी

AKULAHTE...MERE MAN KI
AKULAHTE...MERE MAN KI
  • 25 Posts
  • 686 Comments

dream-1722.jpg (368×469)

नियति तू कब तक खेल रचाएगी

क्या हम सचमुच हैं

तेरे ही कठपुतले

तू जैसा चाहेगी

वैसा ही पाठ सिखाएगी

नियति तू कब तक खेल रचाएगी

कभी कुछ खोया था

कंही कुछ छुट गया था

कभी छन् से कुछ टूट गया था

भीतर जख्मो के कई गुच्छे हैं

गुच्छो के कई सिरे भी हैं

पर उनके जड़ो का क्या

तेरा ही दिया खाद्य  औ पानी था

नियति तू कब तक खेल रचाएगी

कंही कुछ मर रहा है

कंही कुछ पल रहा है

दावानल सा हर कहीं जल रहा है

क्या तुझे नहीं दिखाई दिया है

नियति तू कब तक हाहाकार  मचाएगी

बंद करो मानवता के साथ

अपना क्रूर हास परिहास

नियति तू एक दिन पक्षताएगी

इंसां जब हिम्मत से जोर लगाएगा

उसी पल तू हार जाएगी

खुद से क्या फिर तू आँख मिला पायेगी

शर्म से क्या नहीं  तू  उस  दिन मर जायेगी

नियति तू कब तक खेल रचाएगी

Tags:   

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply