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नवरात्र और नारी शक्ति ..

AKULAHTE...MERE MAN KI
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या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:

सर्वप्रथम आप सभी सुधीजनों को नवरात्र की शुभकामनाए..

बहुत दिनों से मेरे मन में  कुछ बातें चल रही थी आज आप सबके साथ  बाटना चाहती हूँ / कोई नई बात मैं नहीं कहने जा रही पर जब तक इन
बातो का सही अर्थ में स्थान नही मिल जाता ये उठती रहेंगी/

अभी हाल में ही मुझे एक छोटी सी काव्य गोष्टी में भाग लेने का अवसर मिला / जहाँ १५-२० लोग उपस्थित थे /इनमें ज्यादातर पत्रकार बंधू थे और ४ -५ कविगण थे जिनमे से एक मैं भी थी /

संचालक महोदय जिनसे भी हाल ही में मित्रता हुई है  मुझे उन्होंने नारी शक्ति कह के कुछ जयादा ही जोर दे के  स्वागत किया / उस वक्त मैंने कुछ भी नहीं सोचा /

एक बात बताती चलू जिन महोदय ने ये काव्य गोष्ठी रखी थी उनका जन्म दिवस था और वो एक छोटे से समाचार पत्र के उपसंपादक भी है उसकी भी नौवी वर्षगाठ थी / बरहाल कार्यक्रम शुरू हुआ / अब मुझे समझ में आ रहा था वो काव्य गोष्ठी नहीं गुणगान गोष्ठी थी / जिन्हें भी मंच पे बुलाया जाता वो उपसंपादक महोदय का गुणगान करता / कविता पाठ अभी तक किसी ने नहीं किया / जिनकी वर्षगाठ थी उनसे भी इधर ही जान पहचान हुई थी इसलिए अभी तक मैंने उनकी कोई भी साहित्तिक कृति पढ़ी नहीं थी न ही जानकारी ही थी .. कैसा लिखते हैं , क्या लिखते हैं / बस उनके मित्र जो भी आके गुणगान करते उसी के अनुरूप अपने दो शब्द तैयार कर लिया था मैंने बधाई देने के लिए / और अपने कवितायेँ पाठ करने के लिए तो ले के गयी ही थी बड़े अरमान से /

इसी बीच संचालक महोदय के मुंह से कई बार नारी शक्ति -२ सुन रही थी / बार -२ नारी शक्ति का सम्बोधन सुनकर पहले मुझे हास्य बोध हुआ और बाद में मैं मन ही मन खिन्न होने लगी  क्योंकि जिस तरह का वातावरण था वहा ये शब्द अपनी गरिमा खो रहा था / और वैसे भी मैं वहा अपने आपको एक कवी की तरह ही देख रही थी न की स्त्री या पुरुष की तरह चूँकि अकेली नारी वंहा मैं उपस्थित हूँ इसका वो मुझे बार -२ ज्ञान करवा रहे थे  / और  हर एक गजल या शायरी के बाद संचालक महोदय नारी शक्ति -२ करने लग जाते जो अब असहय होने लगा और व्यंग सा लगने लगा  इधर एक और पत्रकार महोदय ने इस शब्द को पकड़ा और जब उनकी बारी आई तो उन्होंने इस विषय पे ही गंभीरता से अपनी बात रखी / मुझे थोड़ी राहत मिली / पर मेरा दिमाग तो घूम चूका था मैं बैठे -२ मन ही मन में संचालक महोदय से लड़ रही थी क्यूँ हम हमेशा  इंसान को इंसान ना समझ  के उसे धर्म -जाती था स्त्री- पुरूष के भेद की सीमा में बांध देते हैं /

आज से जब दुर्गा के रूप में नौ दिन शक्ति की आराधना शुरू हो गयी है / तो क्या इन दिनों देश  में कन्या भ्रूण हत्या रुक जायेगी / या कन्या के जन्म लेने पे वाकई में प्रसंता व्यक्त करेंगे . या ये सिर्फ मुंह से ही कहेगे मेरे घर दुर्गा आई, लक्ष्मी आई और मन ही मन माता रानी से रोष भी रखेंगे / इसमें दो राय नहीं है , गरीबी , दहेज़ का भय , कंही पिछड़ी मानसिकता आदि के कारण कई जघन्य अपराध हो रहे है और इन घरो में माँ दुर्गा की आराधना भी की जा रही होगी / वही कंही बलात्कार भी हो रहे होगे / और हमारे नेतागण अपनी असम्वेदनशील ब्यान भी देते रहेगे / जो अपनी पत्नी अपनी बेटियों को सम्मान नहीं दे सकता वो क्या हकदार है इस अराधना का / क्यूँ इनको दिखावा करने को छुट मिली हुई है /

ये कैसा विरोधाभास है इस भारत भूमि का / क्यों पूजा के लिए स्त्री को प्रतिस्थापित किया और बड़े -२ गुणगान किये गए है / जबकि करनी में तो कुछ और ही दीखता है /

स्त्री पहले एक इंसान है उसे इंसान का दर्जा तो पहले  सही तरीके से दो / उसे जीने तो दो / उसे समूल नस्ट कर और फिर  मूर्तियाँ स्थापित करने का कुचक्र बंद करो /
बंद करो महिमामंडन का ढोग / उसे बस समाज का हिस्सा बन ने दो / आसमान पे बिठाने का स्वांग बंद करो / नारी को सिर्फ नारी ही रहने दो वो अपनी शक्ति स्वयं पहचान लेंगी /

ये सारी बातें  मेरे दिमाग में कूद फांद ही रही थी की संचालक महोदय का फिर से जोर से आवाज आई और फिर से वही  नारी शक्ति वाली टेक और मुझे मंच पे बुलाया / मैंने मैं अपने कविता  सुनाई जिसमे किसी को रूचि नहीं दिखी सभी गप्पे मारने में मशगुल थे / कार्यक्रम समाप्त हुआ /

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