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परम्परा की थाती …

AKULAHTE...MERE MAN KI
AKULAHTE...MERE MAN KI
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नवरात्री आ गई

सोच रही हूँ माँ तुम्हें

गंगा स्नान के बाद

आज भी लगाती हो तुम आलता

पायल सजे पैरो में

देवी पूजन से पहले

सजती हो देर तक

फिर तैयार करती हो पूजन सामग्री

भोग के लिए खीर , पुए , चूरन , चरणामृत

फल , फूल

हवन समाग्री की लिस्ट को

एक बार मिलाती

कहीं कुछ छुट तो नहीं गया

सजाती हो रंगोली

हल्दी , चावल और कुमकुम से

फिर कलश स्थापना करती हो

माँ दुर्गा की सजी तस्वीर

बैठा चुकी होती हो चौकी पर

गंगा जल अंजुरी भर कर

ओउम पवित्रो पवित्र: का सस्वर पाठ  कर

सबके कल्याण के लिए कर जोड़

शुरू करती हो दुर्गासप्तशती

साथ में जलता है नौ दिन अखंड  दिया

माँ  जानती हो

इनदिनों  मेरे लिए तुम

साक्षात् देवी हो जाती हो

मैं  तुम्हें अपलक निहारा करती हूँ

परम्परा की ये थाती

मैं भी संभालुंगी एक दिन

जानती हूँ

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